Friday 8 January 2016

प्रसिद्ध कथाकार राजमोहन झा नहीं रहे

मैथिली के जाने-माने कथाकार और समीक्षक राजमोहन झा नहीं रहे। उनका 87 वर्ष की उम्र में गुरुवार को निधन हो गया। वे काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। उनके परिवार में रूपा झा सहित तीन पुत्रियां हैं। उन्हें मैथिली कथा ‘आई काल्हि परसू’ के लिए वर्ष 1996 में साहित्य अकादमी दिल्ली से पुरस्कृत किया गया था। मैथिली में उनकी कुल नौ रचनाएं हैं। हिन्दी में भी वे समीक्षा लिखते रहे। उनके आकस्मिक निधन से मैथिली साहित्य जगत मर्माहत हो गया है।
   
मैथिली के युवा समीक्षक कमल मोहन चुन्नू के मुताबिक कुमर बाजितपुर, वैशाली के मूल निवासी राजमोहन झा की गणना मैथिली के चोटी के साहित्यकारों में होती है। उन्होंने पचास के दशक में मैथिली में लिखना शुरू किया। श्रम विभाग में नियोजन पदाधिकारी रहते हुए भी साहित्य सृजन करते रहे। उनकी रचनाएं पारंपरिक कथा-कहानियों से हटकर होती हंै। खासकर पात्रों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण उसे खास बना देता है।
उनकी प्रमुख रचनाओं में गलतीनामा, भनैहि विद्यापति, आई काल्हि परसू शामिल हैं। वे आरंभ पत्रिका के संपादन से भी जुड़े रहे। उनके पिता स्व.हरिमोहन झा मैथिली साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार रहे हैं। उन्हें भी साहित्य अकादमी से पुरस्कृत किया जा चुका है। इस वर्ष साहित्य अकादमी के मैथिली साहित्य का पुरस्कार उनके छोटे भाई डॉ.मनमोहन झा को मिला है।
चेतना समिति के सचिव प्रो.बासुकीनाथ झा, उपाध्यक्ष विवेकानंद ठाकुर, संयुक्त सचिव उमेश मिश्रा, उपाध्यक्ष विवेकानंद झा, रघुवीर मोची, राम सेवक राय, जगत नारायण चौधरी, समीक्षक शरदिंदु चौधरी आदि ने उनके निधन को मैथिली के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। घघाघाट, महेन्द्रू स्थित निवास पर शोक व्यक्त करने वालों का तांता लगा रहा। 

source :http://www.livehindustan.com/news/bihar/article1-rajmohan-jha-died--511395.html

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