Friday 8 January 2016

विलक्षण कथाकार आ संवेदनशील समीक्षक राजमोहन झा (1934-2016) : अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि




मैथिली साहित्यमे “भाइ साहब’के नामसं विख्यात राजमोहन झाक नाम संवेदनशील कथाकार, दृष्टिसम्पन्न समीक्षक, मानवीय चेतनाक गंभीर गवेषक के रुपमे बड्ड सम्मानसं लेल जायत अछि। 87 वर्षक वयसमे हुनकर आकस्मिक निधनसं मैथिली साहित्य जगतमे शोक व्याप्त अछि ।
कुमर बाजितपुर, वैशालीक मूल निवासी, हास्यव्यंग्य साहित्य-सम्राट हरिमोहन झाक सुपुत्र राजमोहन झाक कथामे मध्यमवर्गीय शहरी जीवनक सजीव चित्रण, आ ओकर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण बड्ड गहीरता सं कएल गेल अछि। हुनकर कथाके मानवीय पीड़ाक मार्मिक चित्रण आन कथासं फ़राक करैत अछि। हुनकर प्रसिद्ध साहित्यिक कृतिमे “झूठ सांच”, ‘एकटा तेसर”, “आई काल्हि परसू”, “अनुलग्न”, “गलतीनामा”, “भनैहि विद्यापति, आदि महत्वपूर्ण अछि। कथामे अंतत:, युद्ध—युद्ध—युद्ध, एक अप्पन लोक, अनर्गल, अन्तराल आदि किछु प्रमुख नाम अछि। राजमोहन जीकें “आई काल्हि परसू’ के लेल वर्ष 1996मे साहित्य अकादमी पुरस्कारसं सम्मानित कएल गेल छल।
मैथिली कथामे ललित, मायानन्द मिश्रा, धूमकेतु, धीरेन्द्र, रमानन्द रेणू आदि नक्ष्त्रसं जगमग पहिल पीढीक बाद, दोसर पीढीक अहम कथाक्कारक सूचीमे राजमोहन झाक नाम स्मरणीय अछि। आन कथाकरमे बलराम, जीवकान्त, रामदेव झा, प्रभाष चौधरी, गंगेश गुंजन आदि किछु पैघ नाम अछि।
राजमोहन झा जी “आरम्भ” पत्रिकाक सम्पादक सेहो छलैथ!
आऊ हमसब साहित्यानुरागी एहि वरिष्ठ , विलक्षण साहित्यकारकें श्रद्धापूर्ण नमन करी!

साभार : भास्कर झा 


बहुत रास लोकक श्रद्धांजली विशेष पोस्ट पढ़लहुं आ वैह सब पढ़ि आइ हुनक पहिल आ अंतिम दर्शन लेल निकलि गेलहुं.
मुदा ओहि ठाम पहुंचलाक बाद जे दुख भेल से कहि नहि सकैत छी. एतेक पैघ मैथिली कथाकार/आलोचक/समालोचक, मैथिली गद्य सम्राट हरिमोहन झा जीक पुत्र आ हुनक विदाइ काल मैथिलीक नाम पर मात्र सात गोटा..
हमरा ई सोचि-सोचि के मोने-मोन बड्ड आत्मगलानि भऽ रहल अछि जे हम सेहो वैह मैथिली साहित्य जगत मे काज कऽ रहल छी, छीः
साभार : बाल मुकुन्द 


मैंथि‍ली के शीर्षस्‍थ कथाकार राजमोहन झा नहीं
रहे। आज उनका देहावसान हुआ। एक आदि‍ एक अंत, झूठ-सांच, एकटा तेसर, आर्इ काल्‍ह परसूं आदि‍ कई कथा-संकलनों के रचनाकार राजमोहन झा का न होना मेरे लि‍ए बेहद पीड़ादायी है। वे मैथि‍ली के वि‍रल लेखकों में थे, जि‍नकी रचनाशीलता ने मैथि‍ली कहानी को नए भावबोध से परि‍चि‍त कराया और कहन का नया अंदाज़ दि‍या। .........वि‍दा भाईजी। अहांक अंति‍म प्रणाम।


साभार :हृषिकेश सुलभ 



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