Monday 11 January 2016

विद्यापति रचना - दूती

ला खे तरुअर कोटिहि लता
जुबति कत न लेख।
सब फुल मधु मधुकर नहि
फुलहु फुल बिसेख।।

जे फुल भमर निदहु सुमर
बासि न बिसरि पार।
जाहि मधुकर उड़ि - उड़ि पड़
सेहे संसारक सार।।

सुंदरि , अबहु बचन सून।
सबे परिहरि तोहि इछ हरि
आपु सराहहि पून।।


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