Friday 29 January 2016

मैथिली साहित्य महासभाक स्थापना दिवस -२१ फ़रवरी २०१६

समस्त मैथिल  मैथिली साहित्यप्रेमीजन कें नमस्कार!
अपने सबहक सहयोग  आशीर्वाद मैथिली साहित्य महासभा दिल्ली अपन स्थापनाक पहिल वर्ष पूर्ण करय जा रहल अछि..२१ फ़रवरी २०१६ कय.
२१ फरवरी अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवसक रूपमें मनाओल जैत अछि...संगहि  दिन आब मैथिली साहित्य महासभाक स्थापना दिवसक रूपमें सेहो जानल जायत...किएक अही दिन स्थापना भेल छल मैथिली साहित्य महासभाक.
दिल्ली में मैथिली साहित्यकेर उन्नयन  संवर्धन हेतु बनल  संस्था अपन पहिल वर्ष में व्याख्यानमालाक आरम्भ सेहो कयलकसंगहि अपन स्थापना दिवस पर एकबेर फेर अपने सबहक समक्ष "द्वितीय वार्षिक संगोष्ठी : मैथिली साहित्यक वर्तमान परिदृश्यप्रस्तुत अछि...
२१ फ़रवरी २०१६दिन रवि संध्याकाल ३बजे एकबेर फेर प्रतीक्षा रहत अपने समस्त साहित्य प्रेमी केर नई दिल्ली केर रफ़ीमार्ग स्थित कन्स्तीच्युशन क्लबमें...
अपने सबहक सिनेह सदिखन मैथिली साहित्य महासभा के भेटैत रहत एहि विश्वासक संग...
अपनेक अमर नाथ झा (Amar Nath Jha
अध्यक्ष
मैथिली साहित्य महासभादिल्ली

Monday 18 January 2016

मिथिलाक जीवित विद्यापतिः मधुकर केर ९४वाँ जन्मदिन आइ


madhukar baba


मिथिलाक जीवित विद्यापतिः मधुकान्त झा ‘मधुकर’ केर ९३ वर्ष पूरा
आइ १९ जनबरी, २०१६ पं. मधुकान्त झा ‘मधुकर’ अपन ९३वाँ बसन्त पूरा कएलनि अछि। एहि अवसर पर नीलकंठ कमरथुआ संघ, चैनपुर आयोजनपूर्वक श्रेष्ठ स्रष्टाक सम्मान करबाक नियार केलनि अछि।
एक अप्रतिम शिव-भक्त आर संस्कृत एवं मैथिली भाषा-साहित्य केर स्रष्टा पंडित मधुकान्त झा ‘मधुकर’ केर जन्म एक साधारण गृहस्थ परन्तु अत्यन्त शिक्षित-सुसंस्कृत ब्राह्मण परिवार मे १९ जनबरी, १९२४ ई. केँ भेलनि। हिनक पिता स्वरूपलाल झा आ माता छेदनी देवी केर निरंतर प्रयास सँ शिक्षा-दीक्षा पूर्ण कयलनि तथा शिक्षक बनिकय लोकप्रियता हासिल कएलनि। अपन शिक्षण पेशाक संग लेखन मे सेहो महारत हासिल करैत कतेको रास रचनाक प्रकाशन सेहो करौलनि, आरो कतेक रास रचना हाल धरि अप्रकाशित छन्हि।
अपन गाम केर पारंपरिक धर्म-संस्कृति केँ संवर्धन-प्रवर्धन हेतु नीलकंठ कमरथुआ संघ केर स्थापना कएलनि। प्रत्येक वर्ष गाम सँ सुल्तानगंज होएत बाबा बैद्यनाथधाम तथा बाबा वासुकिनाथ धरिक कामर यात्रा केर संचालन भेल जे आइ धरि ओहि इलाकाक सर्वथा राष्ट्रीय आयोजन समान मनाओल जा रहल अछि। सैकड़ो श्रद्धालू गंगाजल सँ भरल कामर लेने धाम धरिक यात्रा महामंत्र हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे – हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे केर कीर्तन जाप करैत जाएत छथि। भोर आर सांझ केर पड़ाव पर हिनका लोकनि द्वारा विद्यापति, मधुप, मधुकर आदि महान सर्जक लोकनिक गीतकार केर शिव-भजन गाबैत माहौल केँ भक्तिमय बनौने रहैत छथि। ई छटा एखनहु माघ पूर्णिमा सँ आगामी सात दिन धरिक कामरियाक बाट मे देखबा लेल भेटैत अछि। एहि सबहक संस्थापक मधुकर बाबा केर आइ ९४वाँ जन्मदिन थीक जाहि अवसर पर चैनपुर (सहरसा) गाम मे समारोहक आयोजन कैल गेल अछि।
बाबाक शिष्य व अनुगामी लोकनिक भीड़ भोरे सँ गाम मे आयब शुरु भऽ गेल अछि ई जानकारी हिनक दोहित्र संस्कृत विद्वान् तथा शोधार्थी दिल्ली सँ मैथिली जिन्दाबाद केँ करौलनि अछि। ओ जानकारी करबैत कहलैन जे आइ सौंसे इलाकाक लोक मे आध्यात्म सँ जुड़ाव केर एकटा मुख्य स्रोत मधुकर बाबा केँ मानल जाएछ। संगहि समाजसेवा मे सेहो बाबाक योगदान अविस्मरणीय अछि। केकरो बच्चा अशिक्षित नहि रहि जाय, ताहि प्रति पूर्ण संकल्पक संग अपनहि लंग राखिकय निर्धन सँ निर्धन छात्र तक केँ शिक्षा दियौलनि। आइ बाबाक शत-प्रतिशत शिष्य देश भरि मे उच्च स्थान पर कार्यरत छथि आर बाबा प्रति अनुराग मे किनको कहियो कमी नहि देखल गेल। कतेको रास शिक्षक, प्रोफेसर आदि बाबाक सिखायल गुर अनुरूप अपनो लब्ध-प्रतिष्ठित स्थान पर सुशोभित होयबाक सुख बाबा केँ सेहो अपन आजन्म तपस्याक फल स्वरूप देखाएत रहल छन्हि, कहैत छथि कुमुदानंदजी।
मैथिली जिन्दाबाद केर संपादक प्रवीण नारायण चौधरी अपन स्मृति बाबा संग पहिल भेंटक किछु एहि तरहें याद करैत छथि, हुनक गाम कुर्सों सँ सेहो सैकड़ों कीर्तनिया कमरथुआ ‘जय सीताराम जय जय सीताराम’ केर महामंत्रक जाप करैत माघ पूर्णिमाक दिन जल उठबैत ५ दिन मे बाबाधामक यात्रा तय करैत अछि, आर एहि तरहें मधुकर बाबाक समूह संग भेंट होएत रहब सौभाग्य होइछ। परंच जखन स्वयं बाबा कतहु-कतहु ठाढ भऽ कय पैदल चलि रहल कमरिया सब केँ भैर आँखि देखैत छथि तऽ एना लगैछ जेना कि मानू स्वयं शिव आबिकय कमरथुआ केँ आशीर्वाद दैत उत्साह बढा रहल होइथ जे आब धाम बेसी दूर नहि अछि, बस चलैत चलू – चलैत चलू!! बाबाक बनायल कइएक भजन केर गान सेहो सुमधुर लगैछ। हुनक एक भजन “डिम डिम डमरू बजाबय छय हमार जोगिया” तऽ सदिखन कंठे मे रहैछ कमरथुआ सबहक।
१९६८ सँ १९७४ धरि मधुकर बाबा आकाशवाणीक पटना केन्द्र मे सेहो अपन योगदान प्रवचन विभाग मे देलनि। हुनकर श्रोता ओना तऽ एक सँ बढिकय एक लोक छलाह लेकिन ताहि समयक सर्वाधिक लोकप्रिय जननेता कर्पुरी ठाकुर हुनक देल नित्य सीख केँ ग्रहण कएनिहार नियमित श्रोता मे सर्वाधिक चर्चत छलाह। १९४८ मे कहरा प्रखंड केर उद्घाटनकर्ताक रूप मे सेहो मधुकर बाबा केँ स्मरण कैल जाएछ।
बाबाक प्रकाशित रचना मे समाज सौगात, नवीन नचारी, अभिनव नविन नचारी, मधुकर माधुरी, नीलकंठ मधुकर पदावली शामिल अछि। तहिना नारद भक्ति सूत्र केर मैथिली अनुवाद संग समाचरित शंकराचार्य प्रश्नोत्तरी एवं मधुकर नीलकंठ षटकम् (संस्कृत) आ नीलकंठ एकादशत्व (संस्कृत) सेहो प्रकाशित रचना मे शामिल अछि।
पंडित मधुकर १९७१ मे नीलकंठ कमरथुआ संघ केर स्थापना बनगाँव बाबाजी कुटी पर केलनि आ ओहि ठाम सँ हुनकर शिवभजन आ नचारीक संग देवी भजन इत्यादि ख्याति प्राप्त कएलक।
आइ हुनक ९३ वर्ष पूरा भेला पर समस्त मिथिलावासी मैथिली आ संस्कृत साहित्य केर क्षेत्र मे उल्लेखनीय योगदान हेतु हुनका कोटि-कोटि शुभकामना दय रहल अछिः “जिवेद शरदः शतम्”।
साभार : मैथिली  जिंदाबाद 
http://www.maithilijindabaad.com/?p=4075

Wednesday 13 January 2016

तुलसी के इन आश्‍चर्यजनक लाभों को नहीं जानते होंगे आप

तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है। विशेषकर सर्दी, खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है। इसीलिए भारतीय आयुर्वेद के सबसे प्रमुख ग्रंथ चरक संहिता में कहा गया है|तुलसी हिचकी, खांसी,जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित वायु खत्म होती है। यह दूर्गंध भी दूर करती है।तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबंधित बीमारियों को भी ठीक करती है।तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली कफ, खांसी, हिचकी, उल्टी, कृमि, दुर्गंध, हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है। तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है, ताकि यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचे और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समस्या पैदा हो रही हो तो उसे खत्म कर दे। शरीर में किसी भी तरह के दूषित तत्व के एकत्र हो जाने पर तुलसी सबसे बेहतरीन दवा के रूप में काम करती है। सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है।

त्वचा निखारे, रूप संवारे

तुलसी में थाइमोल तत्व पाया जाता है, जो त्‍वचा रोगों को दूर करने में मददगार होता है। तुलसी और नींबू का रस बराबर मात्रा में मिलाकर चेहरे पर लगाने से झाइयां व फुंसियां ठीक होती हैं। और साथ ही चेहरे की रंगत में निखार आता है।

खांसी करे उड़न-छू

तुलसी की पत्तियां कफ साफ करने में मदद करती हैं। तुलसी की कोमल पत्तियों को अदरक के साथ चबाने से खांसी-जुकाम से राहत मिलती है। तुलसी को चाय की पत्तियों के साथ उबालकर पीने से गले की खराश दूर हो जाती है।

सिरदर्द में मिले राहत

तुलसी का काढ़ा पीने से सिरदर्द में आराम मिलता है। तुलसी के पत्तों के रस में एक चम्‍मच शहद मिलाकर रोजाना सुबह शाम लेने से 15 दिनों में अर्द्धकपाली जैसे रोगों में लाभ मिलता है।

दस्‍त और उल्‍टी दूर भगाए

छोटी इलायची, अदरक का रस व तुलसी के पत्तों को समान मात्रा में मिलाकर लेने से उल्टी नहीं होती। दस्त लगने पर तुलसी के पत्ते भुने जीरे के साथ मिलाकर शहद के साथ दिन में तीन बार चाटने से लाभ मिलता है।

तनाव को कहें बाय-बाय

तुलसी में तनावरोधी गुण भी पाए जाते हैं। कई शोध तनाव में तुलसी के लाभ के बारे में पुष्टि कर चुके हैं। रोजाना तुलसी के 10-12 पत्तों का सेवन करने से मानसिक दक्षता और तनाव से लड़ने की आपकी क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है।

आंखें चमक उठेंगी

आंखों की समस्‍या 'विटामिन ए' की कमी से होती है। तुलसी का रस आंखों की समस्‍याओं में अत्‍यंत लाभदायक होता है। आंखों की जलन में तुलसी का अर्क बहुत कारगर साबित होता है। रात में रोजाना श्यामा तुलसी के अर्क को दो बूंद आंखों में डालना चाहिए। हालांकि, आपको सलाह दी जाती है कि इस उपाय को आजमाने से पहले अपने नेत्र चिकित्‍सक से सलाह जरूर ले लें।

सब सुनेगा साफ-साफ

कान की समस्‍याओं जैसे कान बहना, दर्द होना और कम सुनाई देना आदि में तुलसी बहुत ही फायदेमंद होती है। तुलसी के रस में कपूर मिलाकर उसे हल्‍का गर्म करके कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है। कनपटी के दर्द में तुलसी की पत्तियों का रस मलने से बहुत फ़ायदा होता है।

नहीं होगी सांस की तकलीफ

श्वास संबंधी समस्याओं का उपचार करने में तुलसी खासी उपयोगी साबित होती है। शहद, अदरक और तुलसी को मिलाकर बनाया गया काढ़ा पीने से ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और सर्दी में राहत मिलती है।

सांसों की दुर्गंध होगी दूर

तुलसी की कुछ पत्तियों को रोजाना चबाने से मुंह का संक्रमण दूर हो जाता है। तुलसी की सूखी पत्तियों को सरसों के तेल के साथ मिलाकर दांतों को साफ करने से सांसों से दुर्गध नहीं आती है।

किडनी रहेगी फिट

तुलसी किडनी को मजबूत बनाती है। किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर उसका अर्क बना लें। इस अर्क को शहद के साथ नियमित 6 महीने तक सेवन करने से पथरी यूरीन मार्ग से बाहर निकल जाती है।

तुलसी के बीज का औषधीय उपयोग 

जब भी तुलसी में खूब फूल यानी मञ्जरी लग जाए तो उन्हें पकने पर तोड़ लेना चाहिए वरना तुलसी के पौधे में चीटियाँ और कीड़ें लग जाते है और उसे समाप्त कर देते है |इन पकी हुई मञ्जरियों को रख ले , इनमे से काले काले बीज अलग होंगे उसे एकत्र कर ले , इसे सब्जा कहते है | अगर आपके घर में तुलसी के पौधे नही है तो बाजार में पंसारी या आयुर्वैदिक दवाईयो की दुकान से भी तुलसी के बीज ले सकते हैं वहाँ पर भी ये आसानी से मिल जाएंगे |
शीघ्र पतन एवं वीर्य की कमी ---- तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से समस्या दूर होती है

नपुंसकता---- तुलसी के बीज 5 ग्राम रोजाना रात को गर्म दूध के साथ लेने से नपुंसकता दूर होती है और यौन-शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है।

मासिक धर्म में अनियमियता------ जिस दिन मासिक आए उस दिन से जब तक मासिक रहे उस दिन तक तुलसी के बीज 5-5 ग्राम सुबह और शाम पानी या दूध के साथ लेने से मासिक की समस्या ठीक होती है और जिन महिलाओ को गर्भधारण में समस्या है वो भी ठीक होती है

तुलसी के पत्ते गर्म तासीर के होते है पर सब्जा शीतल होता है . इसे फालूदा में इस्तेमाल किया जाता है . इसे भिगाने से यह जैली की तरह फूल जाता है . इसे हम दूध या लस्सी के साथ थोड़ी देशी गुलाब की पंखुड़ियां डाल कर ले तो गर्मी में बहुत ठंडक देता है .इसके अलावा यह पाचन सम्बन्धी गड़बड़ी को भी दूर करता है तथा यह पित्त घटाता है |
ये त्रिदोषनाशक व क्षुधावर्धक है |




Tuesday 12 January 2016

Dr. Birbal jha speaks on PAAG BACHAO ABHIYAN

विष्णु पुराण पर आधारित जम्बूदीप मानचित्र

भारत को ""जम्बूदीप""
क्यों कहा जाता है (why India
is Jambu Dweep)
क्या आप जानते हैं कि..... हमारे देश
का नाम ............... “भारतवर्ष” कैसे
पड़ा....?????
साथ ही क्या आप जानते हैं कि....... हमारे
प्राचीन भारत का नाम......"जम्बूदीप"
था....?????
परन्तु..... क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं
कि..... हमारे भारत को ""जम्बूदीप""
क्यों कहा जाता है ... और, इसका मतलब
क्या होता है .....??????
दरअसल..... हमारे लिए यह जानना बहुत
ही आवश्यक है कि ...... भारतवर्ष का नाम
भारतवर्ष कैसे पड़ा.........????
क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है
कि ........महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत
और उनकी पत्नी शकुंतला के
प्रतापी पुत्र ......... भरत के नाम पर इस देश
का नाम "भारतवर्ष" पड़ा...... परन्तु
इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...!
लेकिन........ वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ
अलग बात...... पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत
करता है......।
आश्चर्यजनक रूप से......... इस ओर
कभी हमारा ध्यान
नही गया..........जबकि पुराणों में इतिहास
ढूंढ़कर........ अपने इतिहास के साथ और अपने
आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत
ही आवश्यक था....।
परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है
कि...... जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात
को मानते हैं कि........ प्राचीन काल में साथ
भूभागों में अर्थात .......महाद्वीपों में भूमण्डल
को बांटा गया था....।
लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और
क्यों तथा कब बनाए गये.... इस पर कभी,
किसी ने कुछ भी नहीं कहा ....।
अथवा .....दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि......
जान बूझकर .... इस से सम्बंधित अनुसंधान
की दिशा मोड़ दी गयी......।
परन्तु ... हमारा ""जम्बूदीप नाम "" खुद में
ही सारी कहानी कह जाता है ..... जिसका अर्थ
होता है ..... समग्र द्वीप .
इसीलिए.... हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा...
विभिन्न अवतारों में.... सिर्फ "जम्बूद्वीप"
का ही उल्लेख है.... क्योंकि.... उस समय सिर्फ
एक ही द्वीप था...
साथ ही हमारा वायु पुराण ........ इस से सम्बंधित
पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश
करता है.....।
वायु पुराण के अनुसार...............अब से लगभग
22 लाख वर्ष पूर्व .....त्रेता युग के प्रारंभ
में ....... स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत
के पुत्र ने........ इस भरत खंड को बसाया था.....।
चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र
नही था......... इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के
पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था.......
जिसका लड़का नाभि था.....!
नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ
उसका नाम........ ऋषभ था..... और, इसी ऋषभ
के पुत्र भरत थे ...... तथा .. इन्ही भरत के नाम
पर इस देश का नाम...... "भारतवर्ष" पड़ा....।
उस समय के राजा प्रियव्रत ने .......
अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात
पुत्रों को......... संपूर्ण पृथ्वी के
सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त
किया था....।
राजा का अर्थ उस समय........ धर्म, और
न्यायशील राज्य के संस्थापक से
लिया जाता था.......।
इस तरह ......राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप
का शासक .....अग्नीन्ध्र को बनाया था।
इसके बाद ....... राजा भरत ने जो अपना राज्य
अपने पुत्र को दिया..... और, वही " भारतवर्ष"
कहलाया.........।
ध्यान रखें कि..... भारतवर्ष का अर्थ है.......
राजा भरत का क्षेत्र...... और इन्ही राजा भरत
के पुत्र का नाम ......सुमति था....।
इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है....—
सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं
नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य
किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत।
(वायु 31-37, 38)
मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए.....
रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान
दिलाना चाहूँगा कि.....
हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य
कराते हैं ....... तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी....
संकल्प करवाते हैं...।
हालाँकि..... हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत
हल्के में लेते हैं... और, उसे पंडित जी की एक
धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र ......
मानकर छोड़ देते हैं......।
परन्तु.... यदि आप संकल्प के उस मंत्र
को ध्यान से सुनेंगे तो.....उस संकल्प मंत्र में हमें
वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत
कुछ मिल जाता है......।
संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है
कि........ -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत
देशांतर्गते….।
संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं.....
क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के
लिए प्रयुक्त किया गया है.....।
इस जम्बू द्वीप में....... भारत खण्ड अर्थात
भरत का क्षेत्र अर्थात..... ‘भारतवर्ष’ स्थित
है......जो कि आर्याव्रत कहलाता है....।
इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा....... हम
अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास
का व्याख्यान कर डालते हैं......।
परन्तु ....अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि ......
जब सच्चाई ऐसी है तो..... फिर शकुंतला और
दुष्यंत के पुत्र भरत से.... इस देश का नाम
क्यों जोड़ा जाता है....?
इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर
सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि ......
शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ......इस देश के
नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा .......
शायद नामों के समानता का परिणाम
हो सकता है.... अथवा , हम हिन्दुओं में अपने
धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण
ऐसा हो गया होगा... ।
परन्तु..... जब हमारे पास ... वायु पुराण और
मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य
मौजूद है .........और, आज का आधुनिक विज्ञान
भी यह मान रहा है कि..... धरती पर मनुष्य
का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम
पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर
क्यों विश्वास करें....?????
सिर्फ इतना ही नहीं...... हमारे संकल्प मंत्र में....
पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते
हैं कि........ अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख
तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल
रहा है......।
फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि....
एक तरफ तो हम बात ........एक अरब 96 करोड़
आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह
पुरानी करते हैं ......... परन्तु, अपना इतिहास
पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच
हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!
आप खुद ही सोचें कि....यह आत्मप्रवंचना के
अतिरिक्त और क्या है........?????
इसीलिए ...... जब इतिहास के लिए हमारे पास एक
से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ..... पूर्ण
तर्क के साथ उपलब्ध हों ..........तो फिर , उन
साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर
अपना अतीत अपने आप
खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है.........।
हमारे देश के बारे में .........वायु पुराण का ये
श्लोक उल्लेखित है.....—-हिमालयं दक्षिणं
वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष
तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।
यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है
कि ......... हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष
अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है.....।
इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक
नहीं होनी चाहिए कि......हमने शकुंतला और
दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम
की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास
को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार
साल के अंतराल में समेटने का प्रयास
किया है....।
ऐसा इसीलिए होता है कि..... आज भी हम
गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके
हैं ..... और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार
को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर
दें तो यह हमारे लिये शान की बात
समझी जाती है........... परन्तु, यदि हम अपने
विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन
ग्रंथ का संदर्भ दें..... तो, रूढि़वादिता का प्रमाण
माना जाता है ।
और.....यह सोच सिरे से ही गलत है....।
इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि.... राजस्थान के
इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल
टाड का इतिहास माना जाता है.....।
परन्तु.... आश्चर्य जनक रूप से .......हमने यह
नही सोचा कि..... एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने
समय में भारत में ......आकर साल, डेढ़ साल रहे
और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे
संभव है.....?
विशेषत: तब....... जबकि उसके आने के समय
यहां यातायात के अधिक साधन नही थे.... और ,
वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था....।
फिर उसने ऐसी परिस्थिति में .......सिर्फ
इतना काम किया कि ........जो विभिन्न
रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें
उपलब्ध थीं ....उन सबको संहिताबद्घ कर
दिया...।
इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड
की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने
लगा.......और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि....
राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड
का एकाधिकार है...।
और.... ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में
भी परेशान करती हैं....... इसीलिए.... अपने देश के
इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण
करना हमारा ध्येय होना चाहिए....।
क्योंकि..... इतिहास मरे गिरे
लोगों का लेखाजोखा नही है...... जैसा कि इसके
विषय में माना जाता है........ बल्कि, इतिहास
अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील
और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन
करता है.....।

साभार :फेसबुक पेज - धर्मयुद्ध सम्पूर्ण आर्यावर्त 
https://www.facebook.com/dharamyudhkisena/posts/634577833318266:0