Monday, 30 October 2017

रावण कियाक नहि मरैत अछि ?

रामलीलाक आयोजनक तैयारी पूर्ण भ' गेल छल तहन ई प्रश्न उठल जे रावणक पुतला केना आ कतेक मे ख़रीदल जाए ? ओना रामलीला आयोजनक सचिव रामप्रसाद छल तैं इ भार ओकरे पर द' देल गेल। भरिगर जिम्मेदारी छल। रावण ख़रीदबाक छल। संयोग सँ एकटा सेठ एहि शुभकार्य लेल अपन कारी कमाई मे सँ पांच हजार टाका भक्ति भाव सहित ओकरा द' देलक। मुदा एतबे सँ की होएत ? नीक आयोजन करबाक छलै। चारि गोटा कहलक चन्दा के रसीद बनबा लिअ। जल्दिये टाका भ' जाएत। सैह भेल। चंदाक रसीद छपबा क' छौड़ा सबके द' देल गेल। छौड़ा सब बानर भ' गेल। एकटा रसीद ल' क' रामप्रसाद सेहओ घरे- घर घूम' लागल।

घुमैत - घुमैत एकटा आलीशान बंगलाक सामने ओ रुकल। फाटक खोलि क' कॉल वेळक बटन दबेलक। भीतर स' कियो बहार नहि निकलल। ( आलीशान घर मे रह' बला आदमी ओहुना जल्दी नहि निकलैत अछि ) रामप्रसाद दोहरा क' कॉलवेळ बजेलक - ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग एहि बेर तुरन्त दरबाजा खुजल आ एकटा साँढ़ जकाँ 'सज्जन' दहाड़इते बाजल - की छै ? की चाही ? ( गोया प्रसाद पुछलक - भिखाड़ी छैं ? ) 
'' हं .... हं , हम रावणक पुतला जडेबाक लेल चन्दा एकत्रित क' रहल छी " रामप्रसाद कने सहमिते बाजल। 
" हूँ ........ चन्दा त' द' देबउ मुदा ई कह रावण कतेक साल स' जड़बैत छैं ?
" सब साल जड़बै छियै। '' रामप्रसाद जोरदैत बाजल। 
" जखन सब साल जड़बै छैं त' आखिर रावण मरै कियाक नहि छौ ? सब साल कियाक जीब जाई छौ ? कहियो सोचलहिन ? " 
" ई त' हम नहि सोचलहुँ। " रामप्रसाद एहि प्रश्न कने प्रभावित भ' गेल।
“त' आखिर कहिया सोचबै ? एह कारण छौ जे रावण कहियो मरिते नहि छौ। . . . . . . ठीक छै रसीद काटि दे।"
" ठीक छै , की नाम लिखु ? "
" लिख - - - रावण। "
" रावण ? ? ? " रामप्रसाद कने बौखलायल ।
" हँ, हमर नाम रावण अछि। की सोचैं छैं की राम राम हमरा मारि देने छल ? नहि, यहां नहि छै। दरअसलमे रामक तीर हमर ढ़ोढ़ी पर जरूर लागल छल। लेकिन हम वास्तव मे मरल नहि रहि। केवल हमर शरीर मरल छल, आत्मा नहि। गीता तू पढ़ने छैं ? हमर आत्मा कहियो नहि मरि सकैत अछि। "
"त' कि आहाँ सच्चे मे रावण छी ? हमरा विश्वास नहि होइत अछि।" रामप्रसाद भौंचक होइत बाजल।
" हँ ! त' कि तोरा आश्चर्य होइत छौ ? हेबाको चाही। मुदा सत्यके नकारल नहि जा सकैत छैक। जहिया तक संसारक कोनो कोण मे अत्याचार, साम्राज्यवाद, हिंसा आ अपहरण आ की प्रद्युमन एहन ( जे गुड़गांवक रेयान इंटरनेशन स्कूल मे भेल ) जघन्य अपराध होइत रहत तहिया तक रावण जीविते रहत। " तथाकथित रावण बाजल। ": से त' छै , मुदा - - - - ।" रामप्रसाद माथ पर स' पसीना पोछैत बाजल। " मुदा की ? रे मुर्ख ! राम त" एखनो जीविते छै। ओहो हमरे जकाँ अमर छै। ओकर नीक आ हमर अधलाहक मध्य द्वन्द त' सदैव चलैत रहत। हम जनैत छी, ने नीकक अंत हेतै आ ने अधलाहक। एहि तरहेँ तोरो चन्दा के खेल चलिते रहतौ। अच्छा आब रसीद काट। "
" अच्छा जे से कतेक लिखू ? " रामप्रसाद डेराइते बाजल। लिख, पाँच हजार। की, ठीक छौ ने ? हमर भाय धन कुबेर अछि। लाखो रुपया विदेश सँ भेजैत अछि। हमरा रुपयाक की कमी ? एकटा सोनाक लंका जड़ि गेल त' की भ' गेलै ? जयवर्धनक लंका मे एखन तक अत्याचार चलिते छै ? ई ले पाँच हजारक चेक। " रावण चेक काटि रामप्रसाद के द' देलक आ दहाड़ईत बाजल --- " चल आब भाग एतय स'।"
रामप्रसाद डेराइते बंगला सँ बाहर भागल। बाहर देखैत अछि एकटा कार ठाढ़ छै आ दू टा खूंखार गुण्डा एकटा असहाय लड़कीके खिंचैत रावणक आलिशान बंगला दिस ल' ;जा रहल छै। रामप्रसाद घबरा गेल। ओ पाँच हजार रुपयाक चेक फेर सँ जेबी स' निकालि देखलक आ सोच' लागल कि ई सच्चे रावण छल की ओकर प्रतिरूप छल ? ओकरा किछ समझ मे नहि आएल। ओ ओत' स' लंक लागि भागल ओहि मे ओकरा अपन भलाई बुझना गेलैक।
रामलीला आयोजनक अध्यक्षके जखन एहि बातक पता चलल कि रामप्रसाद लग दसहजार रुपया इकट्ठा भ' गेल त' ओ दौड़ल - दौड़ल रामप्रसाद लग गेल आ कहलक ----- " रे भाई रामप्रसाद, सुनलियौ जे चन्दा मे दसहजार रुपया जमा भ' गेलौ ? चल आई राति सुरापान कएल जाए। की विचार छौ ?"
" देखु अध्यक्ष महोदय ! ई रुपया रावणक पुतला ख़रीदबाक वास्ते अछि। हम एकरा फ़ालतूक काज मे खर्च नहि क' सकैत छी। " रामप्रसाद विनम्र भाव सँ कहलक।
अध्यक्ष गरम भ' गेलाह। बजलाह --- " वाह रे हमर कलयुगी राम ! रावण जड़ेबाक बड्ड चिन्ता छौ तोरा ? चल सबटा रुपया हमरा हवाला करै, नहि त' ठीक नहि हेतौ। "
" ख़बरदार ! जे रुपया मंगलौं त' ! आहाँके लाज हेबाक चाही। इ रुपया मौज - मस्ती के लेल नहि बुझू आहाँ ? रामप्रसाद बिगड़ैत बाजल। एतै छै चन्दाक रसीद ल' क' घूम' बला छौड़ा सभक वानर सेना। चारु कात सँ घेर क' ठाढ़ भ' गेल। रामक जीत भेल। अध्यक्ष ( जे रावणक प्रतिनिधि छल ) ओहिठाम सँ भागल। 
खैर ! रावणक पैघ विशालकाय पुतला खरीद क' आनल गेल आ विजयादशमी सँ एक दिन पहिनहि राईत क' मैदान मे ठाढ़ क' देल गेल। अगिला दिन खूब धूमधाम सँ झाँकी निकालल गेल। सड़क आ गली - कूची सँ होइत राम आ हुनकर सेना मैदान मे पहुँचल। जाहिठाम दस हजारक दसमुखी रावण मुस्कुराइत ठाढ़ छल। रावणक मुस्कुराहट एहन लागि छल बुझू ई कहि रहल हो कि " राम कहिया तक हमरा मारब' हम त' सब दिन जीबिते रहब। राम रावणक मुस्कुराहट नहि देख रहल छलाह। ओ त' जनताक उत्साह देखैत प्रसन्न मुद्रा मे धनुष पर तीर चढ़ौने रावणक पेट पर निशाना लगबक लेल तत्पर भ' रहल छलाह। कखन आयोजकक संकेत भेटत आ ओ तीर चलोओता। मुदा कमीना मुख्य अतिथि एखन तक नहि आएल छल। (ओहिना जेना भारतीय रेल सब दिन देरिये भ' जाएल करैत छैक ) आयोजक लोकनि सेहओ परेशान छलाह। आधा घंटा बीत गेल। अतिथि एलाह। आयोजकक संकेत भेल। आ ----- राम तुरन्त अपन तीर रावण दिस छोड़ि देलाह। तीर हनहनाईत पेट पर नहि छाती पर जा लागल। आ एहिकसँग धमाकाक सिलसिला शुरू भ' गेल, त' मोसकिल सँ पाँच मिनट मे सुड्डाह। बेसी रोशनीक संग रावण स्वाहा भ' गेल। ओकरा जगह पर एकटा लम्बा बाँस एखनो ठाढ़ छल। किछ लोक छाऊर उठा - उठा क' अपन घर ल' जाए लागल। (पता नै जाहि रावणके लोक जड़ा दैत छैक ओहि रावणक छाऊर के अपना घर मे कियाक रखैत अछि ?)
किछ लोक बाँस आ खपच्ची लेबक लेल सेहओ लपकल। ओहिमे एकटा रामप्रसाद सेहओ छल। लोक सब बाँस आ लकड़ी तोइर - तोइर क' बाँटि लेलक आ अपन घर दिस बिदा भ' गेल। रामप्रसाद बाँसक खपच्ची ल' क' रस्ता पर चलल जाइत छल कि एकाएक एकटा कार ओकरा लग रुकल आ एक आदमी ऊपर मुँह बाहर निकालि क' अट्टहास करैत बाजल - - - " की रावण जड़ा क ' आबि गेलौं ? एहि बेर ओ मरल की नहि ? हा - - - हा - - - हा - - - । " ओ वैह आदमी छल जे अपना आपके रावण कहैत पाँच हजार रुपयाक चेक देने छल। रामप्रसादक मुँह बन्न। घबराईते बाजल - - " जी - - - हाँ - - - हाँ - - - हाँ - - - , जड़ा देलियै। "
" मुदा ई बाँस आ खपच्ची कियाक ल' क' जा रहल छै ? रावण बाजल। " हँ , कहल जाईत छैक जे एहिसँ दुश्मन के मारला सँ ओकर हानि होइत छैक। " रामप्रसाद बाजल। " ठीक, त' एहि सँ लोक अपन बुराई के कियाक नहि अन्त क' दैत छैक ? एकरा घर मे रैखिक' तू सब रावणके जान मे जान आनि दैत छहक। तैं त' हम कहैत छी कि हम मरियो क' जीवित केना भ' जाएत छी ! रावण बाजल। ई सुनिते रामप्रसाद बाँस आ खपच्ची स' ओकरा हमला करबाक लेल लपकल, मुदा रावण कार चलबैत तुरन्त भागि गेल। ओ एखनो जीविते अछि।

कहानी का नाम : रावण मरता क्यों नहीं ?
लेखक : संजय स्वतंत्र 
पुस्तक का नाम : बाप बड़ा न भइया सबसे बड़ा रुपइया 
प्रकाशक : कोई जानकारी पुस्तक पर उपलब्ध नही
अनुदित भाषा : मैथिली 
अनुदित कर्ता : संजय झा "नागदह" 
दिनांक : 29/10 / 2017 , समय : 02 :11 am
कहानीक अनुदित नाम : रावण कियाक नहि मरैत अछि ?

Thursday, 4 May 2017

मैथिली साहित्य महासभा (ट्रस्ट) और विद्यापति डॉ० सुभद्र झा प्रेरणा मंच के तत्वावधान में बहुभाषाविद मिथिला के  युगपुरुष डॉ० सुभद्र झा के  सत्रहवाँ पुण्यतिथि पर पुष्पांजलि, संगोष्ठी एवं कवी सम्मलेन के  आयोजन  हुनकर  पुण्यतिथि 13 मई 2017 के  माध्यमिक शिक्षक संघ मधुबनी में दिन के 12 बजे से आयोजन अछि ,  
      संगोष्ठी में डॉ० झा के कृतित्व और व्यक्तित्व पक्ष पर मिथिला के दिग्गज विद्वान द्वारा विचार राखल जयत ।  हिनकर  कृतित्व पक्ष पर डॉ० रामदेव झा, पंडित चंद्र नाथ मिश्र "अमर", डॉ शशिनाथ झा, श्री श्याम दरिहरे, डॉ कमला कान्त भंडारी, डॉ शंकरदेव झा, श्री अशोक कुमार ठाकुर अपन वक्तव्य  देता । व्यक्तित्व पक्ष पर डॉ भीम नाथ झा, डॉ उमाकांत झा, डॉ धीरेन्द्र नाथ मिश्र, डॉ योगानन्द झा, डॉ० श्रीशंकर झा, डॉ खुशीलाल झा, श्री उदय शंकर झा "विनोद" डॉ महेंद्र मलंगिया और डॉ विघ्नेश चंद्र झा सहित अन्य गणमान्य विद्वान् अपन - अपन विचार  रखता । 
          अहि  कार्यक्रम में मैथिली अकादमी पटना निदेशक कमलेश झा, कांग्रेस प्रवक्ता श्री प्रेम चंद्र झा, बीजेपी बिहार प्रवक्ता विनोद नायरायण झा, सांसद हुकुव नारायण यादव, समीर महासेठ, रामप्रीत पासवान, सुमन महासेठ, घनश्याम ठाकुर सहित कई अन्य राजनितिज्ञ और समाजसेवी सेहो  भाग लेता ।  कार्यक्रम के  अध्यक्षता कमला कान्त झा जी करता ।  कार्यक्रम के  परिकल्पना मैसाम के संस्थापक सदस्य संजय झा " नागदह" द्वारा कायल गेल  अच्छी ।  अहि  कार्यक्रम के संयोजक  पंडित श्री कमलेश प्रेमेंद्र और मैसाम  के अध्यक्ष उमाकांत झा बक्शी एवं  संस्था के संस्थापक सदस्य विजय झा , ब्रजेश झा , संजीव झा और राम कुमार  झा , सब  बुद्धिजीवि से आग्रह केला  की कार्यक्रम में आबि के  सफल बनाबी ।  संजय झा " नागदह"  कहला   की डॉ सुभद्र झा  एक ऐहन   मिथिला का विद्वान छैथि  जे  विद्यापति और मैथिली भाषा के  विश्व पटल पर पहुँचाबै  काम केला हन  |   

Friday, 12 February 2016

आमंत्रण / हकार

आमंत्रण / हकार  
आदरणीय,

मिथिला - मैथिली सुधिजन,
मिथिला दर्शनक एक गोट अंक में स्वर्गीय मायानन्द मिश्र लिखने छथि - जहिना प्राचीन विश्वक (अर्थात समस्त इन्दोएरियनकप्राचीनतम काव्य ग्रन्थ थिक ऋग्वेद जाहि मे तत्कालीन जन जीवन ओ जन समाज केर चित्रण भेल अछि,तहिना आधुनिक विश्वकेर प्राचीनतम गद्य ग्रन्थ 'वर्ण रत्नाकरथिक जकर महान गद्यकार थिकाह पण्डित ज्योतिरीश्वरठाकुर जे 1280 ई० मे भेल छलाह।
कहबाक प्रयोजन नहि जे आधुनिक विश्व केर भाषा सभक जन्म भेल अछि ई० केर दसम शताव्दीक पश्चात्। एहि मेज्योतिरीश्वर ठाकुर भेलाह 1280 ई० मे। तकर पश्चात् भेलाह कवि कोकिल महाकवि विद्यापति जे भेलाह (1350) तेरहसौ पचास ई० मे तकर पश्चात् आधुनिक अंग्रेजी भाषा ओ साहित्यक जन्मदाता भेलाह चाँसर जे भेल छलाह तेरह सौतेहत्तरि ई० मे। सामान्यतः अंग्रेजी भाषा साहित्य मे मान्यता प्रचलित अछि जे चाँसर चौदहम शताव्दिक उत्तरार्ध मे भेलछलाह।
कहबाक प्रयोजन नहि जे आधुनिक विश्व भाषा सभक जन्म भने दसम शताब्दीक आसपास भगेल हो किन्तु रचना -परम्पराक जन्म तेरहम - चौदहम शताब्दीक पश्चाते प्रारम्भ होइत अछि। एहि प्रकारें आधुनिक विश्व भाषाक आदिमगद्यकार पंडित ज्योतिरीश्वर ठाकुरे भेलाह जे मिथिलाक छलाह।
यद्यपि  1265 ई० मे इटली मे भेल छलाह दाँते  जे डिवाइन कमेडिक रचना कयने  छलाह।  किन्तु एक तडिवाइनकमेडी सामान्य हास्य व्यंगक काव्य रचना थिक  दोसर ओहि मे लैटिन भाषाक व्यापक प्रभाव अछि।  कहबाक प्रयोजननहि  जे आधुनिक युग गद्यक युग थिक  जकर  प्रमाण छथि अंग्रेजीक समरसेट मामथॉमस हार्डीहेमिंगवे आदि जेसब के सब गद्यकारे छलाह।  दोसर दिस रूस केर टाल्सटाय तथा फ़्रांस केर चेखव आदि सब गद्यकारे छलाह जे एहिआधुनिक गद्य युगक विशेषता थिक।  एहि  प्रकारें आधुनिक गद्य युगक सर्वाधिक प्राचीनतम् गद्यकार मिथिलाकज्योतिरीश्वर ठाकुर भेलाह।
मायानन्द जी लिखै छथि जे इहो महाकवि विद्यापतियेक भक्ति काव्य ओ श्रृंगारिक काव्यक प्रभाव थिक  जे हिन्दी  मेपहिने भक्ति काल आएल आ तकर पश्चात्  रीति (श्रृंगारिककाल आयल।
स्वर्गीय रामवृक्ष बेनीपुरी जीक लिखल पुस्तक 'विद्यापतिजे 1926 मे प्रकाशित अछि ओहि पुस्तकक निवेदन मे लिखनेछथि " हिन्दी भाषाक कोनो कवि हिनकर मधुर वर्णनक छाँह तक नहि छुबि सकैत छथि। मुदा हमरा सभक अकर्मण्यताककारन हिन्दी कविक बीच एखन धरि वो अपन स्थान नहि प्राप्त कसकलाह। एहि कलंक - मोचन के लेल हमरा सब केफाँड़ बान्हि तैयार भजेबाक चाही''
जे भेल से भेलमुदा आब हमरा बुझना जाइछ जे आब ओ समय कतेको शताव्दिक उपरान्त आबि चुकल अछि जे मैथिल,मैथिलीक प्रति जागरूक भरहलाह अछि।  ई मानल जा सकैत अछि  जे पहिने हमरा सब लग संसाधनक घोर अभावछल कदाचित ताहि हेतु सेहओ ध्यान नहि दपाओल होएताह , मुदा आब प्रायः समस्त मैथिल एतवा त संपन्न छथियेजाहि सँ मैथिली भाषा - साहित्यक सम्बर्धन दिस डेग जरूर बढ़ा सकैत छथि।  प्रयोजन अछि नव तुरिया ,युवा सब केएहि दिस अपन मोन बढ़ेबाकपैर बढ़ेबाकगुरुजन सुधिजन के एहन विचार रखबाक जाहि सँ  समस्त मैथिलक खुनकधार मे मैथिली भाषाक प्रवाह होइक। एहि निमित्त भारतक राजधानी दिल्ली मे मैथिली साहित्य महासभा कअंतर्गतअन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 21 फरवरी कआ मैथिली  साहित्यक स्थापना दिवसक सुअवसर पर एकटा वार्षिकसंगोष्ठी” राखल गेल  अछि।  जकर विषय अछि "मैथिली साहित्यक सम्बर्धन - प्रवासी मैथिलक भूमिका ''  एहि  विषयपर अपने विद्वत लोकनि सँ आग्रह जे अपन विचार एहि मंच सँ मैथिल सभक मध्य परसिजाहि सँ मैथिल मे मैथिलीभाषाक प्रति जन चेतना जागृति होइक आ मैथिली साहित्यक पोथीजाहि के कतेको मे दीबार (दीमकलागि गेल ,कतेकोधुल फाँकी रहल अछि से सब बाहर निकलि मैथिलक हाथ मे आबय आ अपन साहित्य के प्रति रूचि बढ़ैक। 
एहि  निमित्त आगामी 21 फरवरी 2016 (रवि दिन) जवाहरलाल नेहरू युथ सेंटर , नारायण दत्त तिवारी भवन , 219 ,दिन दयाल उपाध्याय मार्ग , दिल्ली -110002 (नजदीक आई टी ओ मेट्रो स्टेशन , करीब 200 मीटर ) बेरु पहर 2 बजेसँ  संध्या 6 बजे धरि 'मैथिली साहित्‍य महासभा, केर 'वार्षिक संगोष्ठी ' आयोजित होबय जा रहल अछि । एहि कार्यक्रम मे कुल अपेक्षित संख्‍या 250 अछि, जाहि मे देश भरि सं प्रतिनिधिक उपस्थिति उल्‍लेखनीय रहत। 
अखन धरि एहि कार्यक्रमक अतिथि के नाते श्री महेंद्र मलंगियाडॉ० गंगेश गुंजन, श्री मति मृदुला प्रधान , डॉ० कमायिनीडॉ० चंद्रशेखर पासवानडॉ० अरुणाभ सौरभ , सुश्री  मनीषा झा  प्रभृति वरिष्‍ठ मैथिल साहित्‍यकारगणक सहमति प्राप्‍त भेल अछि।

संगहि एक गोट आग्रह जे अपन सहमति स्वरुप मेल वा पत्रक उत्तर निश्चित रूपेँ दी। कदाचिद् जौं कोनो कारन बसउपस्थिति सम्भव नहि भसकैक त अपन विचार जरूर पठायब जकरा संयोजन समूह क व्यक्ति उपस्थिति मैथिल जनतक राखि सकथि।  
 एहि वार्षिक संगोष्ठी मे अपनेक उपस्थिति प्रार्थनीय अछि।
 अपनेक प्रतीक्षा मे,
 मैथिली साहित्य महासभा
 संयोजक - श्री विजय झा, 9810099451
सह - संयोजक - श्री संजय कुमार झा "नागदह ", 8010218022
 निवेदक - समस्त मैथिल समाज  संस्था दिल्ली।


Saturday, 6 February 2016

मैथिली साहित्य महासभा 21 फरबरी 2016 मे समस्त मैथिल समाज के सब जाना हकार संग स्वागत अछि।




  मैथिली साहित्य महासभादिल्ली केर आगामी कार्यक्रम २१ फरबरी अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस केर उपलक्ष्य विभिन्न लक्ष्यक संग हो ताहि लेल एकटा पूर्व लक्षित प्रस्तावना अपने सभक समक्ष राखि रहल छी। खासकय तखन जखन एहि वास्ते पैछला रवि दिन संपन्न मिटींग मे उपस्थित सदस्य लोकनिक ध्यान भरिसक ओहि दिशा मे नहि गेल  हम अनुभव केलहुँ।
  सर्वप्रथमजाहि उद्देश्यक संग मैथिली साहित्य महासभादिल्लीक स्थापना भेल  फेर सँ बुझल जायमनन कैल जाय आर पैछला समय मे कैल वादा केँ जरुर सँ जरुर पूरा कैल जाय। एहि वास्ते एकटा वृहत् विचार-गोष्ठी तथा समीक्षात्मक वार्ता करैत दृढसंकल्पित कार्यसमितिक चयन करब जरुरी अछि।
हमरा नजरि सँ - कार्य करबाक लेल विचारल बातः

प्रकाशनक दिशा मे डेग
पुस्तक खरीद-बिक्री  वितरण लेल केन्द्र
लेखन पुरस्कार - सम्मान केर वितरण
स्मारिका प्रकाशन
व्याख्यानमाला  कवि-गोष्ठीक संग अन्य गतिविधि सँ सामूहिक सहकार्य बढेबाक आवश्यकता
पंजियन करेबाक  कोष निर्माण करबाक आवश्यकता
देश भरि मे कार्यरत विभिन्न साहित्यिक-सांस्कृतिक तथा मैथिल विशिष्ट पहिचान पर आधारित विभिन्न संस्था  सामूहिक प्रयास सँ परिचय तथा समन्वय करैत छाता संगठनक निर्माणराजधानी मे प्रतिनिधित्व
मैथिली अकादमी पटना  अन्यान्य अकादमीक वर्तमान पर विचार - सुधार लेल समन्वयात्मक प्रयास
दिल्ली मे उपलब्ध विभिन्न तह (छात्रशिक्षकपेशाकर्मीकलाकाररंगकर्मीपत्रकार  अन्यमे सदस्यता अभियान
१०साहित्य अकादमी मे प्रतिनिधित्व ग्रहण करबाक समुचित प्रयास


   भवदीय --
संस्थापक सदस्य - संजय झा नागदह 
(Sanjay Jha )
8010218022
संस्थापक सदस्य - विजय झा  


9810099451