Friday 14 February 2014

मैथिलक लेल पाग शोभा मात्र नहि, संस्कार सेहो थिक



दिल्ली,मिथिला मिरर-संजय झाः पागक संस्कार के शुरुआत अगर ब्राम्हण जाति सँ देखि त सबसँ पहिने एकर उपयोग उपनयन संस्कार के मड़ब ठट्ठी (अर्थात जाहि दिन मड़बा के बन्हबाक दिन होएत छैक) ताहि दिन सँ शुरू होइत छैक, ओहो नव नहि अपितु पुरान पाग सँ ,कारन कदाचित इ मानल जाएत होय कि बालक एखन पूर्ण संस्कार नहि पओलाह अछि तै पुरान पाग पहिराओल जाए. इ क्रम अपनयन संस्कार के समस्त विधि व्यवहार के संपन्न करैत केश कटाएलाक बाद स्नान सँ सुद्ध होएबा तक रहैत अछि. तदोपरांत जखन स्नान कए नव वस्त्र धारण कएल जाएत अछि तखन नव वस्त्रक संग - संग नव पाग सेहो वरुआ के पहिराओल जाएत अछि, इ बुझि जे आब ई एही योग्य संस्कार युक्त भय गेलाह, अर्थात पूर्ण शुद्धि गायत्री मंत्रोपरांत, पाग- बस्त्र धारण मंत्र के संग पहिराओल जाएत अछि.
पागक अनिवार्य दोसर चरण विवाह में देखल में जाएत अछि आ संग - संग ओही वर्षक वरक पावनि- तिहार में सेहो परन्तु ओही पाग में आलरी - झालरी जोड़ि क' व ओहुना. संस्कार युक्त पागक चरण मुख्य रूप सँ मात्र दू देखल यदा - कदा तेसर वा चारिम चरण होएत होए कही नहि. आब जौं देखि त बाँचल सम्मान, जे मिथिला में प्रायः लोक अपन आमंत्रित अतिथि वा सम्बन्धी लोकनि के विदाई स्वरुप भेंट में सम्मानित कय पाँचो टुक वस्त्र के संग - संग अपना ओही ठाम सँ पाग पहिरा बिदा करैत छथि, अर्थात अपना ओहिठाम ई पाग एकटा सम्मान सूचक अछि. ओना जौं देखल जाए त' माथ पर रखबा योग्य सबकिछु बहुतो भाषीय - प्रांतीय लोकक रीती रिवाज़ में सम्मान सँ जोड़ल गेल अछि, चाहे ओ सरदारजीक पगड़ी हो वा राजस्थानीक पगड़ी वा अन्यत्र कतहु कोनो आर नाम सँ, मुदा मिथिलाक सुप्रसिद्ध मैथिलक इ पाग छी माथ परहक ताज छी.
अगर उदहारण स्वरुप देखि त सबकियो अपना -अपना घर - आँगन में किनको ने किनको बजैत सुनने होयब जे माय के बेटी कहैत छथि - धिया रखिह तू नैहर के मान कि बाबू के पाग रखिह, पाग एकटा गर्भित सम्मान अछि जे कि नहियो माथ पर रहला सँ सदैव विदयमान रहैत छैक वा ओ बड़का पाग बाला छथि अर्थात सम्मानित व्यक्ति छथि, पाग दिअनु अर्थात सम्मान दिअनु. पागक हर रंग के अलग - अलग पहचान आ अर्थ छैक, जेना उपनयन आ विवाह में मात्र लाल रंगक पाग पहिरल जाइत अछि आ क्रीम रंग या पीअर या अन्य रंगक पाग सिर्फ सम्मान देबाक बास्ते उपयोग कएल जाएत अछि. मात्र बीसेक वर्ष पूर्व पागक खूब चलन छल, लेकिन ओहु समय में बुजुर्ग लोकनि पाग पहिरि सर- कुटुंब लग पहिर जाइत छलाह, अनिवार्य रूप सँ बरियाती में ताहि में त' कोनो मेष- वृषक बाते नए, परन्तु आब त पाग पहिर जएबा में कदाचित लजाइत छथि. एही एक - दू वर्ष में पुनः पागक प्रचलन के बढ़ाबा देखल जा रहल अछि, ओहु में एक ठाम हम अपना आँखि सँ देखल जे जतेक बुजुर्ग लोकनि छलाह से सब कियो पाग पहिर बरियाती आयल छलाह कदाचिद इ बुझी जे जाहि गाँव बरियाती जा रहल छि ओहि ठामक लोक दूर नहि कहय.
ओ बरयाती सुदई सँ नागदह श्री हेम चन्द्र झा "बौआजी" ओहिठाम आयल छलाह. ओना नागदह में सेहो भव्य स्वागत भेलनि ताहि में कोनो संदेह नहि. एकटा समय छल जखन पाग सभ मैथिल वर्ग आ वर्णक लोक समय - समय पर पहिरल करथि, तकर ब्राम्हण का कर्ण दुई जाति सँ भिन्न जातिक लोक क्रमशः सर्वथा बहिष्कार कए देल. एम्हर अबैत - अबैत त' आब से हाल भेल अछि उपनयन काल में बरुआ तथा विवाह - द्विरागमन काल में वर मात्र अनिवार्यतः पाग पहिरल करैत अछि. वरियातिक लेल पाग पहिरब विरल भए चुकल अछि. मिथिला में जतय पाग सँ एक दोसर के सम्मानित कएल जाईत अछि त' दोसर दिस संस्कार के सेहो पूर्ण करैत अछि. अतः इ कहबा में कोनो अतिश्योक्ति नहि जे पाग मैथिलक पहचान आ सम्मान मात्र नहि अपितु संस्कार सेहो अछि. अतः मैथिल समाज सँ आग्रह जे पुनः सब वर्ग आ वर्णक लोक एही सम्मान आ संस्कार युक्त पाग के अपन माथ पर राखि मिथिला के निखारक प्रयास करथि.

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